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Wednesday, November 10, 2010

Punjabi Girl

Sketch By SANINDER

गुरु नानक बाणी


किसी भी महान संत के संदेशों की सार्थकता दो बातों पर आधारित है, पहली यह कि उनके संदेश विश्वभर के लिये हों न कि किसी जाति विशेष के लिये और सर्वकालिक हों। इस दृष्टि से पांच शताब्दियों के बाद आज भी गुरुनानक जी के संदेश सार्थक हैं बल्कि कई बार तो वे इतने सामयिक लगते हैं मानो आज ही के लिये लिखे गये हों। आज के युग की वैज्ञानिक सोच हर बात को परखती है और गुरुनानक स्वयं ने इस बात का आग्रह किया कि कोई भी बात इसलिये मत स्वीकार कर लो कि बहुत से लोग इसे लम्बे समय से मानते आए हैं। उन्होंने हर मान्यता को तर्क की कसौटी पर परखने को कहा। उनके जीवन से सम्बंधित कई घटनाएं और उनकी लिखी साखियां इस बात को सिध्द करती हैं। हरिद्वार में जब उनका यज्ञोपवीत संस्कार हो रहा था तब उन्होंने गंगा में खडे लोगों को सूर्य को जल चढाते हुए देखा, जब गया ने पंडों ने उन्हें पिंडदान करने को कहा, जब मक्का शरीफ में मौलवियों ने उन्हें खुदा के घर की ओर पैर करके न सोने की हिदायत दी। इन सभी घटनाओं को आधार बना उन्होंने अंधविश्वास और ब्यर्थ की अवधारणाओं का खण्डन किया। और सत्य को पहचानने का आग्रह किया।अपनी एक रचना में उन्होंने लिखा:

सुण मुंधे हरणाखीये गूढा वैण अपारि।
पहिला वसतु पछणाकै तउ की जै वापारू।।


ए आत्मारूपी मुग्ध हिरण! आज मैं तुझसे एक गूढ बात कहने जा रहा हूं। पहले तुम किसी भी वस्तु को ठीक से पहचान लो, फिर उसका व्यापार करो। पहले तथ्य को अच्छी तरह समझ लो फिर उसको स्वीकार करो। हमारा आज का आधुनिक भारतीय समाज व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, समानता और एकता का समर्थन करता है। गुरुनानक जी के संदेशों में इन सभी बातों को बार बार दोहराया
गया है।
वे
आम जन को अंधविश्वासों, पाखंडों, संर्कीणताओं तथा अन्यायी शासक से स्वतन्त्रता प्राप्ति का संदेश देते हैं। उन्होंने उस समय के पाखंडों के बारे में जो कहा था वह आज भी सत्य प्रतीत होता है।

गऊ बिराहमण कउ करु लावहु गोबरि तरण न जाई।
धोती टिका तै जपमाली धानु मलेछां खाई।।
अंतर पूजा पडहि कतेबा संजुम तुरका भाई।
छोडिले पखंडा नाम लईहे जाहि तरंदा।।


तुम गऊ और ब्राह्मण पर कर लगाते हो, धोती तिलक माला धारण करके धान तो म्लेच्छों का उगाया हुआ खाते हो। घर के अन्दर पूजा करते हो और बाहर शासकों को प्रसन्न करने के लिये कुरान पढते हो। यह सब पांखड छोड क़र उसका नाम लो जो तुम्हें इस संसार से तारने वाला है। 'एकस पिता एकस के हम बारक गुरु नानक के संदेशों की मूल भावना यही है। इसीलिये गुरु नानक देव जी ने जाति - पाति, ऊंच - नीच और अमीर गरीब के भेद का कडा विरोध किया। जाणहु जोति न पूछहु जाती आगे जाति न है। उन्होंने कहा मनुष्य के अन्दर की ज्योति को पहचानो जाति को क्यों पूछते हो। जब मरने के बाद तुम्हारे सम्बंध में अंतिम निर्णय होगा तब तुमसे कोई जाति नहीं पूछेगा। गुरु नानक जी ने इसी ईश्वरीय ज्योति को सभी में विद्यमान होने की बात को और इसे पहचानने को ही सबसे बडी योगसाधना माना।

जोगु न खिंधा जोगु न डंडे जोग न भसम चढाइहे।
जोग न मुंदी मूंडी मुडाइये जोगु न सिंघी वाईए।।
अंजन माहि निरंजनि रहीये जोगु जुगति इव पाईये।
गली जोगु न होई।
एक दृसटि करि समसरि जाणे जोगी कहिये सोई।


योग भगवा धारण करने में, हाथ में डंडा ले लेने में, शरीर पर भस्म रमा लेने में, कानो में कुण्डल पहन लेने में, श्रृंगी बजाने में, सर मुंडवाने में या भस्म पोत लेने में नहीं है। वास्तविक योग संसार में रहते हुए भी सांसारिक बुराईयों से दूर रहने में है। वास्तविक योगी वह है जो सभी को समान दृष्टि से देखता हो। गुरु नानक ने हमारे देश के पतन के कारणों का सम्यक अध्ययन किया। उन्होने कहा कि - सच बात यह है कि कोई भी देश अपनी अच्छाइयों को खो देने पर ही पतित होता है। मानो ईश्वर जिसे नीचे गिराना चाहता है, पहले उससे उसकी अच्छाईयां उससे छीन लेता है।

जिस नो आपि खुआए करता।
खुस लए चंगिआई।।


देश की तत्कालीन अवस्था के लिये गुरुनानक उन लोगों को दोषी ठहराते थे जिनकी चरित्रहीनता और अर्कमण्यता तथा ऐश परस्ती के कारण देश की दुर्दशा हुई थी। आज के संदर्भ में भी यही बात सत्य है। गुरुनानक जी ने दलितों की पैरवी कर कहा कि -

जित्थे नीच संभालियन
तित्थै नदिर तेरी बख्शीस।।


देश को उठाना चाहते हो तो पहले दलितों को उठाओ। तभी ईश्वर तुम्हें बख्शीश में अपनी कृपा दृष्टि देगा। यहां दलित जाति मात्र से नहीं सही मायने में पीडित और गरीब लोगों से अर्थ है। उन्होने यह भी कहा कि -

नीचां अन्दर नीच जाति नीची हूं अति नीचु।
नानक तिनकै संगि साथ, वडिआं सिउं किया रीस।।


नीचों से भी नीची जाति के हैं उनसे भी जो नीची जाति के हैं तथा उनसे भी जो नीचे हैं मैं सदैव उनके साथ हूं। उन्होंने तत्कालीन समाज में जो भ्रष्ट और सम्मान हीन जीवन व्यतीत कर रहे थे उन्हें झकझोर कर कहा -

जे जीवै पति लथी जाये।
सभु हरामु जेता किछु खाए।।


गुरुनानक जी के ये संदेश आज भी बहुत असरकारक हैं और आज के संदर्भों की कसौटी पर खरे हैं।

क्या जानू मैं कौन?

न मेरा कोई नाम है, न पता, न ठिकाना. परेशान होने की जरूरत नहीं है. नामों से भेद करने की मानसिकता ठीक नहीं है. पहचान की सुविधा के लोभ में कब हमने नामों को आधार बनाकर भेद विकसित कर लिए क्या हमें पता चला?

नाम हटा दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन होता है?

जाति भेद समाप्त कर दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन होता है?

धर्म का परिचय हटा दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन है?

शरीर की मर्यादा हटा दी जाए तो वहां जो बचता है वह कौन है?

वह जो शेष रह जाता है वही है हम भी और आप भी.


Story


ਉਪਰ ਵਿਖਾਇਆ ਗਿਆ ਵੀਡੀਓ ਇਕ ਗੁਰਦਵਾਰਾ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ (ਮਾਫ਼ ਕਾਰਨਾਂ ਸੰਗਤ ਦਾ) ਉਤਸ਼ਾਹ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ

ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਪਿਹਲਾਂ 300 ਸਾਲਾਂ ਦਿਵਸ ਮਨਾਇਆ, ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ (ਮਾਫ਼ ਕਰਨਾ ਸੰਗਤ) ਹਜੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਪੁਜੀ, ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ 300 ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿਖਾ ਨੂੰ ਇਹ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣਾ ਹੈ ਇਸ ਦੇ ਲੜ ਲਗ ਕੇ ਤੁਸੀ ਪਰਮ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਮੇਸ਼ਵਰ ਨੂੰ ਪਾ ਸਕਦੇ ਹੋ

ਪਰ 300 ਸਾਲ ਦੇ ਵਿੱਚ ਕੀ ਦੁਨੀਆਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਲੜ ਫੜ ਸਕੀ..! ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਪ੍ਰੇਮ ਹੈ, ਨਾ ਹੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਹੈ, ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਇਹ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹਨ ਸਾਡਾ ਗੁਰੂ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨ ਹੈ ਇਹ ਸਚ ਵੀ ਹੈ...! ਪਰ ਸਿੱਖ ਇਸ ਮਹਾਨ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਿਖਿਆ ਨੂੰ ਸ਼ਾਇਦ ਸਮਝ ਨਹੀ ਪਾ ਰਹੇ....! ਜਾਂ ਸਮਝਣਾ ਨਹੀ ਚਾਹੁੰਦੇ...!

ਜੇ ਕਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਸਮਝ ਕੇ ਉਸ ਤੇ ਅਮਲ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਦਸਣ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀ ਸੀ ਪੈਣੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਜੀ ਮਹਾਨ ਹਨ, ਗੁਰੂ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦਾ ਅੰਦਾਜਾ ਉਸ ਦੇ ਸਿੱਖਾ ਦੇ ਵਰਤਾਓ ਤੋ, ਉਹਨਾ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਤੋ, ਪ੍ਰੇਮ ਤੋ, ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੋਂ ਓਹਨਾ ਦੀ ਪਵਿਤ੍ਰਤਾ ਤੋ ਸਿਹਜੇ ਹੀ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ..! ਜ਼ਰਾ ਸੋਚੋ.........!

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"When You Hold The Hand
Of A Person And The Person
Walks With You Without Asking
"Where" And "Why"... ;->

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