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Wednesday, November 10, 2010

क्या जानू मैं कौन?

न मेरा कोई नाम है, न पता, न ठिकाना. परेशान होने की जरूरत नहीं है. नामों से भेद करने की मानसिकता ठीक नहीं है. पहचान की सुविधा के लोभ में कब हमने नामों को आधार बनाकर भेद विकसित कर लिए क्या हमें पता चला?

नाम हटा दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन होता है?

जाति भेद समाप्त कर दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन होता है?

धर्म का परिचय हटा दिया जाए तो वहां जो बचता है वह कौन है?

शरीर की मर्यादा हटा दी जाए तो वहां जो बचता है वह कौन है?

वह जो शेष रह जाता है वही है हम भी और आप भी.


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